जीतेन्द्र चौहान मुकेश कुमार तिवारी
--------------------------------------------------------------------
अपनी नियति को पाने का संघर्ष- हरमन हेस्से_सुश्री जया जादवानी
अच्छी किताबें वही हैं जो हमारे हृदय को करूणा, प्रेम और एक रहस्यमय अनुभूति से भर दें। जिसे हम पाना चाहते हैं वह कहीं आसपास है। एक अमूर्त सी अर्थ की देह, जो जितनी मायावी लगती है, उतनी वास्तविक भी। जीवन के सर्वश्रेष्ठ पल वही होते हैं जब हम किसी क्षण तीव्र चाह से भर उठते हैं कि हम मर जाएँ और फिर वही लम्हा हम अपनी राख से जी उठते हैं।
दर असल हमारी आत्मा अपनी ही प्यास को अपनी देह की कोटर में दबाए किसी पंछी की भाँति दुबकी बैठी है- बाहर ठंड है हवा है और बारिश। क्या उसे यकीन है कि इस खोज में उसे स्वयं नहीं जाना पड़ेगा। जिसे वह खोज रही है, वही आएगा और सबसे बड़ी बात क्या वह जानती है, वह क्या खोज रही है?
कहानी शुरू होती है- सिनक्लेयर के अबोध बचपन की एक मासूम गलती से ...। जिसकी यातना से उसे निजात दिलवाता है मैक्स डेमियान। यही दरअसल उपन्यास का नायक भी है और इन दोनों की दोस्ती.. मिलना-बिछड़ना। एक व्यक्ति की रहस्यमयी यात्रा का विकास क्रम भी है। दुनिया में अगर कुछ खोजने जैसा है तो वह है अपनी खोज और आसान नहीं है यह। बहुत से अँधेरे उजले रास्तों से होते हुए हम कभी जान नहीं पाते कि इसमें नियति का हाथ है या हमारा। कभी लगता है, कोई हमीं में है, जो सब जानता है और हमें रास्ता दिखा रहा है। कभी अकेलापन और भटकाव लगता है।
डेमियान सिनक्लेयर को उसकी और अपनी रहस्यमय यात्रा में ले जाता है। अपने भीतर छिपी शक्तियों से कैसे साक्षात्कार कर उन्हें जगाना, अपने से बाहर लाना-
"दृष्टि और विचारों से व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है।'
यह छोटे -छोटे प्रयोग स्कूल में चलते हैं, फिर वे अलग-अलग भटकन और फिसलन भरे रास्तों पर चले जाते हैं। सिनक्लेयर और कुछ उस जैसे दोस्त - जिन्हें सिर्फ इतना ही पता है कि वे कुछ ढूँढ रहे हैं, जाने बिना कि क्या ? जिन्हें जो कुछ भी नया मिला है, अपनी सनक और जुनून की वजह से मिला है।
किस तरंग में वह जा रहा है, कहाँ से निर्देश आ रहे हैं, ये ऐसी बातें हैं जो व्यक्ति के चुनाव से परे हैं। इस सफर में उसे मिलता है, पिश्टोरियस- गुरूय पादरी। जो इस विश्व का अंत और नये विश्व का प्रारंभ देखता है। ये दोनों संकेतों और सपनों के सहारे नियति के बीहड़ मैदान में अपना पथ ढूँढते हैं। खुद से दुबारा पैदा होना एक वेदनामयी प्रक्रिया है।
पंछी अंडे से निकलने के लिये संघर्ष कर रहा है। अंडा विश्व है जिसे जन्म लेना है, उसे एक विश्व को नष्ट करना होगा। पक्षी ईश्वर के पास जा रहा है। ईश्वर का नाम है- अब्राक्सस। जिसमें ईश्वर और शैतान दोनों समाहित हैं।
दरअसल इन कुछ लोगों का उद्देश्य था- नया धर्म, नया ईश्वर, जिसे अब्राक्सस कहकर पुकारते थे वे। नया समुदाय, नयी पूजा पद्धतियाँ, उल्लास, उत्सव, रहस्य। यहाँ न पाप है, न घृणा, न नैतिकता, न अपनी प्रवृत्तियों और प्रलोभनों से पलायन।
जब आप किसी व्यक्ति से घृणा करते हैं तो दरअसल आप उसमें किसी ऐसी चीज से घृणा कर रहे होते हैं, जो आपके अपनी ही अंदर है।
जब तक ज्ञान की किरण मनुष्य पर नहीं पड़ती, तब तक वह मछली या भेड़ है, कीड़े या जोंक है, चींटियाँ या मधुमक्खियाँ हैं। सड़क पर चलता हुआ हर दोपाया मनुष्य नही माना जाएगा, सिर्फ इसलिये कि वह सीधा चलता है और संतान को नौ महीने पेट में रखता है।
मनुष्य अपनी क्षमता की जड़ों से संबंधित होकर ही अपने को खोज और अपना विकास कर सकता है। पर लोग डर जाते हैं। उन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं होता।
सिनक्लेयर अपनी उम्र के अठारहवें बरस में था और स्वाभाविक रूप से प्रेम की तलाश में था। वह सपने में देखता कि अपने घर में प्रवेश कर जिसे गले लगा रहा है वह है एक विशाल काया जिसका आधा शरीर पुरूष का था, आधा स्त्री का और इस सपने की बाबद वह किसी को न बता पाता। सिनक्लेयर ने अपनी दीवानगी में जो तस्वीर बनायी थी, वह उसी से सवाल पूछता, उसे कोसता, माँ मानता, प्रार्थना करता, प्रेमिका मानता, रंडी और वेश्या भी मानता, अब्राक्सस मानता।
बेयाटिस की जिस प्रतिमा ने उसे अँधेरे - बदबू भरे रास्तों की सड़न से ऊपर उठाकर उजाले की धरती पर ला खड़ा किया था- उसका मिलना अकस्मात लगते हुए भी अकस्मात नहीं था। यह मनुष्य के भीतर छिपी जिजीविषा दृढ़ इच्छा शक्ति की प्रतीक है कि वह हमेशा बुराइयों को पछाड़ता हुआ खुद को ईश्वरत्व के समीप और समीप लाना चाहता है। दरअसल हमारी इच्छाशक्ति ही हमसे आजाद हो, ऐसे मायाजाल रचती है जो हमारे भटके पैरों को रास्ता देते हैं।
और फिर उपन्यास का आखिरी और महत्वपूर्ण मोड़- स्कूल के दिन खत्म करके सिनक्लेयर वापस आया और इत्तफाक से उसकी मुलाकात डेमियान से हो गई, जो इत्तफाक नहीं था। प्रकृति में कुछ भी इत्तफाक नहीं होता। आखिर नियति ने सिनक्लेयर को डेमियान की माँ के सामने खड़ा कर दिया- जिसकी तस्वीर से वह बेइंतहा मोहब्बत करता। अपने बेटे से मिलते-जुलते चेहरे वाली, समय से परे, उम्र से परे, अंदरूनी शक्ति से भरी वह सिनक्लेयर से कहती है-
"जन्म लेना हमेशा मुश्किल होता है। आप जानते हैं कि पक्षी को अंडे से निकलने के लिये कितना कष्ट उठाना पड़ता है।'
ये हैं फ्राक एवा, नियति की तरह अकाट्य । हर चीज की जानी जानन पर और इसके बाद सिनक्लेयर ने अपने सपने को पहचान लिया। कभी -कभी वह अपराध बोध से ग्रसित हो उठता। एवा उसे अपने सपने पर यकीन करने के लिये प्रेरित करती। वह उसके असंतोष और चाह की पीड़ा को महसूस करती। वे कहती हैं-
अकेलेपन और अपने अस्तित्व से जंग लड़ रहे सिनक्लेयर को यहाँ आकर काफी सुकून मिलता है, जैसे अपनी सही जगह पर आ गया हो। वह फ्राक एवा और डेमियान के रहस्यमय संसार का हिस्सा होने ही लगता है कि युद्ध छिड़ जाता है। दोनों को जाना पड़ता है। फ्राक एवा वहीं रहती है।
तमाम लौकिक कथाओं के बीच यह कुछ अलौकिक सी कथा है,जो समाज के नैतिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाती हुई मानव के लिये अपना धर्म खुद रचने का आव्हान करती है। प्रेम अरूप होकर भी अपने शिखर पर होता है। यह मनुष्य के भीतर बसे उस संसार की कहानी है, जिसे खोजने तो कई निकलते हैं पर पहुँच कुछ एक ही पाते हैं।
अंत में युद्ध में जख्मी वह अस्पताल में पड़ा है। बगल के बिस्तर पर उसे डेमियान दिखता है, जो उसे कहता है- अब तक हर मुश्किल में तुमने मुझे याद किया है, अब मैं नहीं आऊँगा। अब तुम्हें अपने ही भीतर आवाज देनी होगी।
और फिर वह उसे वह चुम्बन देता है, जो उसे उसकी माँ फ्राक एवा ने दिया था, सिनक्लेयर के लिये कि जब वह तकलीफ में हो उसे दे देना।
यहाँ प्रेम अपने महानतम स्वरूप में है- ऐसा कहना भी सही नहीं। वह बस है- उतना ही पवित्र, उतना ही ऊँचा जितना आसमान पर दिखता तारा। तुम्हें अगर खुद पर यकीन हो तो जरूर छलांग लगा लेना, वह मिलेगा।
-------------------------------------------------------------------------------
बी-136, वीआईपी स्टेट,
विधानसभा मार्ग,
रायपुर (छग)
मो.: 9827947480
वरिष्ठ कवयित्री जयाजी की नौ किताबें आ चुकी हैं, इन दिनों रायपुर में रहती हैं।
विधानसभा मार्ग,
रायपुर (छग)
मो.: 9827947480
वरिष्ठ कवयित्री जयाजी की नौ किताबें आ चुकी हैं, इन दिनों रायपुर में रहती हैं।