शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

पत्रिका गुंजन - गर्मियों का मौसम- लेखक दिलीप चिंचालकर


गौरेया के पापा का किस्सा है। गर्मियों का मौसम था और वे इंग्लैण्ड की सैर कर रहे थे। योरप में ये दिन होते ही हैं बड़े मजे के। वसंत ऋतु में तरह-तरह के फूल खिलते हैं और जैसे-जैसे मौसम गर्म होने लगता है उनकी फलियाँ बनकर बीज पड़ने लगते हैं। पक्षी-गिलहरी और दूसरे छोटे जानवरों की बन आती है। खाने की इफरात होती हैऔर वे यहाँ-वहाँ इतराते फिरते हैं। खाने से ज्यादा बिखेरते हैं क्योंकि हवा ही कुछ पगला देने वाली रहती है।
ऐसे में पशु-पक्षी क्या, मनुष्य भी बौरा जाता है। गौरय्या के पापा भी जिनका नाम नहीं दे रहे हैं क्योंकि इसमें उनकी भद्द पिट सकती है।, सड़क चलते उटपटांग हरकते करने लगे। वे जिस फुटपाथ पर चल रहे थे उस पर एक दुकान थी जिसका नाम था "मंकी बिजिनेस'।
किस्से का अगला हिस्सा उस जगह का है जहाँ कभी चार्ल्स डार्विन रहता था। यह वही वैज्ञानिक है जिसने बंदर को मनुष्य का पूर्वज होने की बात बताई थी। इस साल उसके जन्म को दो सौ वर्ष हो रहे हैं। आज की तरह तब भी इस बात को लेकर लोगों ने काफी ठिठौली की थी।
तुम पूछोगे कि कुछ बंदर अब इंसान हो गए हैं और कुछ बंदर अभी बंदर क्यों हैं? तो सच यह है कि हर इंसान के अंदर एक बंदर बसता है, फिर वह जिंदादिल हो या खब्ती। तभी तो मंकी नाम पढ़ते ही एक भला दिखने वाला मानुष भी हाथ-पैर नचाने लगा। जब बंदर बाहर नहीं निकल सकता तो मनुष्य खब्ती हो जाता है।
सच पूछो तो वह तख्ती जो डार्विन के लंदन वाले घर के बहार लगी है, छोटी करके हर खुशमिजाज व्यक्ति की कमीज या ब्लाउज पर लग सकती है। यानी डार्विन हरेक के भीतर है और वहाँ बैठे बंदर को उकसा रहा है। बस बड़ों को बुरा न लगे इसलिए कहा जाता है कि हरेक के अंदर एक बच्चा होता है, भला बच्चों और बंदरों में कोई फर्क होता है ?


"गौरय्या कुंज'
वी-4, संवाद नगर, नौलक्खा
इन्दौर 452 001

3 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सुंदर रचना..
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई!!!

Vinay ने कहा…

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई....